लफ्जों में तमीज
लफ्जों में तमीज ढूंढने लगी हूं
शिकायतों को भी शब्दों से सजाने का हुनर ढूंढने लगी हूं
लफ्जों में तमीज ढूंढने लगी हूं।
कितनी मेहनत तुमको लगी होगी मुझे बदतमीज कहने में
अफसोस इस बात का मुझे ज्यादा है ,
अब अपनी हर तमीज में,
खुद ही “बद” ढूंढने लगी हूं।
लफ्जों में तमीज ढूंढने लगी हूं।
कब कहां अपने अल्हड़ मिजाज को मैंने तवज्जो दी, आपके सफेद कॉलर की तमीज में ही सारी जिंदगी व्यतीत की ,
समझ ही नहीं पाई सरल सहज व्यवहार मेरे से आपको इतनी तकलीफ हुई
सजा कर रिझा कर कहना कितना जरूरी है आपसे, समझदार होकर भी ता उम्र ना समझ बने रहने में ही मैंने समझदारी की।
कितनी खुशी किस से बांटनी है
किस रिश्ते की बुनियाद को
कब मजबूती देनी है यह समझ मुझ में नहीं थी यह सच है आपका,
पर मेरी जगह कहां है ?
खुद अपने ही घर में खुद की जगह ढूंढने लगी हूं
लफ्जों में तमीज ढूंढने लगी हूं।
मां को देखा मरते हुए रिश्तों के लिए, तो उनका ही अनुसरण किया, तुम्हारा भी आत्म सम्मान बढ़ाने के लिए,
पर अब मान नहीं, सम्मान नहीं, सिर्फ अपने खोए अस्तित्व को ही ढूंढने लगी हूं।
निर्माण किया मासूमों का
हर संस्कार दिया ना तोड़ा कभी रिश्ता फर्ज का,
कहीं चूक ना जाऊं, फिर कर लूंगी हिसाब तुमसे मेरे हर संघर्ष का,
टालती रही अपनी हर उस लड़ाई को जो आड़े आ जाती मेरे मां होने की बड़ाई में।
पर अब कोई डर नहीं ,
रुकूंगी ठहरूंगी नहीं,
अब
पर फैला कर आराम से आसमान को निहारूंगी,
सितारों के बीच मेरी जगह,
कैसे खो दी मैंने,
उस जगह को
अब ढूंढने लगी हूं।
लफ्जों में तमीज ढूंढने लगी हूं।