शिव – शीर्ष से उतरकर जब मां पालन करती है
तब सगर के पुत्र तो तर ही जाते हैं
संतो के मन को भी हरती है।
“सगर के पुत्रों के लिए आई”
यह तो एक बहाना था,
वरना गंगा को तो सदियों तक,
धरती को स्वर्ग बनाना था।
स्वर्ग से वह आई,
पर स्वर्ग को कहां भूल पाई,
सो धरती की प्यास बुझाती रही,
कर सिंचित उसको, यहीं स्वर्ग बनाती रही।
किसने यहां क्या ना पाया,
जोगी भोगी दोनों ने शीश नवाया।
मां, जो तुम ना होती,
तो ,सोच कर मन घबरा जाता है।
“कौन” खुद को मिटा कर इस तरह,
“मौन हो” बहता ही जाता है।
शिव -शीर्ष तुम्हारा आसन है,
शिव -संकल्प ही, तुम्हारा आराधन है।
मां ,तुम ही शिव और शिवा हो,
हे गंगे ,तुम मां
हो,
सिर्फ मां हो।
हर हर गंगे
हर हर गंगे।