परमानंद

तुम खुश रहो,
खूब आनंद करो, यही मैं चाहूं ,
बस एक बार मुझे परमानंद तो कहो।


स्रोत हूं में हर आनंद का,
सारी श्रुतियांं कह रही,
झूम रही प्रकृति,
नदी बह रही,
पवन चल रही।

जिसे तुम ढूंढ रहे हो जग में
हूं मैं वही आनंद तुम्हारे अंतर्मन में,

ओ जीव,
बैठ जरा,

पूरी सांस
तो भर,

पा, जो न पाया,

भाग -भाग कर,।

आनंद पूरा,
जरा सा ठहर कर, ले,
स्रोत हूं मैं हर आनंद का,
एक बार परमानंद तो मान मुझे।
तुम खुश रहो
यही चाहूं मैं।

 

Sangam Insight

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