यत्र योगेश्वरः कृष्णो, यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्री विजयः भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
होकर भी मैं हूं नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
मैं
सत्य हूं, साहस हूं,
सहज हूं, बेवजह हूं,
वजह से हूं, सब हूं,
सब में हूं।
ढूंढो जहां में,
मैं कहां नहीं हूं।
होकर भी मैं हूं नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
जिसने भी प्यार किया, अधूरा ही रहा।
मैंने पूरा उसे बनाया।
मैया ने, बाबा ने, दाऊ ने,
सखा ने, सखी ने मुझे प्रिय कहा।
राधा ने प्रिय से प्रीतम बनाया।
फिर उसे भी, बिरह में छोड़,
रुक्मिणी को उठा लाया।
रंकों को राजा,
राजाओं को रंक बनाया।
मेरे भेद अनेक।
अनेकों में “मैं” ही दिखाया।
नेति-नेति कह वेदों ने,
पूर्णमिदं गाया।
और,
क्या कहूं, क्या नहीं।
होकर भी मैं हूं नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
हूं मैं आग,
जो है शीतल।
हवा में “गुम”,
झरने का हूं मैं
कलकल।
धरा हूं, गगन हूं,
और आने वाला
कल भी हूं मैं।
उचित में, अनुचित में,
चिंता में, निश्चिंतता में।
सत्-चित्-आनंद हूं मैं।
चल में, अचल में,
व्याप्त सर्वत्र,
सब में हूं मैं।
पुकारो, पाओ वहां,
जहां तक तुम्हारी सोच भी नहीं।
होकर भी, मैं हूं नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
जिसको भी मैं लगा प्यारा,
हो गया हमारा।
खुद को खोकर, मेरा होकर,
खुद में मुझको पाया।
आसक्ति को मेरे रंग में डुबा,
भक्ति के रंग में रंगा।
लगन का अखंड दिया,
मन में जिसने जलाया।
अंड में ब्रह्मांड को,
उसी ने पाया।
उसी ने पाया।
पाकर,
मस्त हुआ इतना कि,
मुझको भी भुलाया।
अब मैं खुद ध्यान उसका करता हूं।
प्यार मैं उसको,
उससे ज्यादा करता हूं।
कहीं खो न जाए,
इसीलिए गोद में उठाकर चलता हूं।
इसीलिए ख्याल मैं उसका
ज्यादा रखता हूं।
इस बेवजह प्यार की वजह हूं मैं।
इस मस्ती को टिकाए रखना
आसान नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
क्या कहूं, क्या नहीं।
होकर भी, मैं हूं नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।
मुझे प्यार करना इतना आसान नहीं।