जिंदगी समता और ममता की है कहानी
मानो तो गंगा नहीं तो बहता पानी
एक दूजे में समायी एक दूजे की रवानी
हे प्रभु कैसा खेल है किसने यह जीवन को नचाने की ठानी।
समता मुश्किल में राह दिखाए,
ममता जड़ता मिटाकर आंचल फैलाएं।
जो ममता ना हो तो आंचल भरे कैसे
तृषित नन्हे की तृषा बुझे कैसे।
तृप्त हो ,
वहीं आंचल से खेले,
अधिक तृप्त हो तो
गोदी में वहीं सो ले।
अब मां किस पर लुटाए ममता
तब समता का भाव उसमें भर जाए।
समता में मां
ईश्वर कहलाए।
जब ममता हो यशोदा सी
तब ईश्वर भी बालक
बन जाए।