ऋतुराज बसंत का है आगमन
प्रकृति और पुरुष का हो रहा सुंदर समागम
कंदर्प अगणित बाण चला रहे
सबके मन में मिलन भाव जाग रहे
हर कली को फूल बना रहे
आज सज गई धरती सुंदरतम,
बज रहे चहुं दिस जलतरगं ।
पचरंगी छाई है बहार
जित देखो आर हो या पार,
मिलन को उत्सुक है, सारा संसार,
घड़ी मिलन की, ये किसको मिलाने को है, बेकरार,
यह कौन है
जो समाधि में है बैठा हुआ,
यह कौन है
जिसका इंतजार है अब पूरा हुआ,
यह कौन है जिसने, मरने की ठान कर, ऋतुराज बसंत, प्रकट किया।
कह तुलसी,
“सबके हृदय मदन अभिलाषा
लता निहारि, नवहिं तरु साखा
मरनि ठान मन रचेसि उपाई,
नदी उमड़ अंबुधि कहुं जाई ,
संगम करें तालाब तलाई,
कुसुमित नव तरु राजि विराजा, प्रगटेसि तुरत रुचिर रितु राजा।”
हे कामदेव, तुम धन्य हो,
धन्य तुम्हारा बलिदान,
धन्य तुम्हारी शिव-भक्ति।
शिव शक्ति के मिलन हित
प्रगटाई निज सृष्टि।