“Garv se kaho hum hindu hain”

*गर्व से कहो हम हिंदू हैं*

विवेकानंद ने दिया जो वाक्य, कई सालों से है भारतीयों का अभिमान, पिछली चार दशकों से मन में बसा, किशोर अवस्था में कहती थी गर्व से, “हम हिंदू हैं”।

नजरें घूरती, अचंभित होती, हैरान और परेशान होकर देखती, पर मौन रहकर सब सहती, समय के संग बदलाव आया, एक सत्ता से दूसरी सत्ता आई।

हिंदुत्व कभी चमका, कभी ढल गया, शिव पर जल, तुलसी में पानी, अविरत दिनचर्या में शामिल रहा, 2014 के बाद बदलाव आए, हिंदू संस्कृति के बीज मुस्कुराए।

2020 में और पौधे हंसे, सीमा पर सैनिक मुस्कान बांटे, 2024 में मेहनत रंग लाएगी, हिंदुत्व की जीत, मां का सम्मान सजाएगी।

नियति की परीक्षा, आंतरिक षड्यंत्र, गर्व से कहो हम हिंदू हैं, फिर शंकित हो गई, सौ वर्षों की जीत, फिर रहस्य में ढल गई, रोटी, कपड़ा, मकान के लालच में, मां के आंचल को तार-तार कर दिया।

त्यागी तपस्वियों का मान ना किया,
भूख, बेरोजगारी के नाम पर,
घर की इज्जत पर वार किया,
समाधान है ब्रह्म वाक्य में,
पर कुछ हिंदू हमेशा डरे रहे।

शिवाजी, झांसी की रानी के वंशज हो, महाराणा प्रताप का नाम डूबो दोगे, समझ नहीं आता, एक टोपी और एक धोती में जो कह आए उनके देश में तुम अपने देश में ना कह पाए, धोबी की औलाद, कौन सा परिचय पत्र पढ़ आए।

देश है तो संविधान है,
संविधान से देश नहीं,
वोटों की राजनीति का शिकार हो गए,
सिर्फ एक समस्या थी, अब सौदा सौ पार कर गए,
अभी भी समय है जागो, गर्व से कहो हम हिंदू हैं।

न केवल ब्राह्मण, न केवल वेश, न केवल शूद्र,
यह सब तो वर्ण व्यवस्था है,
हिंद महासागर के भारत खंड का हिंदू हूं,
दिखने में बिंदु हूं, पर पूर्ण सिंधु हूं,
आज प्रण लेता हूं, कोई पूछेगा अगर जाति,
कहूंगा – मेरा स्वाभिमान, स्वतंत्र भारत,
और मैं स्वतंत्र भारत का हिंदू हूं।

यही श्रद्धांजलि, यही पुष्पांजलि,
यही अलख अब घर-घर जली है,
मैं हिंदू बसा अब हर घर में,
हर गली में।

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