अब क्या कहना
कहना सुनना पीछे छूट गया
गिले शिकवों का भी जमाना गया, अब तो बस जिंदगी शेष रही
सोचूं अब इसका क्या करना है
क्या फिर से इसी चक्करवहू में एक बार फिर फंसना है , नहीं
या फिर शेष को विशेष करना है।
अबकी बार कहने सुनने में नहीं पड़ना है ।
मौन रहकर सांसों में रमण करना है
राम कोई और नहीं खुद आत्मा का बोध है
भीड़ में खोए हुए के लिए राम सुबोध हैं ।
सिर्फ और सिर्फ अस्तित्व की पहचान है।
इसी को जानना ही बस ज्ञान है।
कुछ करने कहने या सुनने का महत्व छूटा जा रहा है
मैं हूं मानव,
मेरा ध्येय पास और पास आता जा रहा है।
बंसी बजाता मेरा सांवरा मुस्कुरा रहा है,
क्यों ना समझूं कि वह मुझे ही बुला रहा है,
कि वह मुझे ही बुला रहा है।
कहना सुनना पीछे छूट गया,
बहुत पीछे छूट गया।