मौन हुए सब प्रश्न

मौन हुए सब प्रश्न

अब प्रश्न हुए सब मोन
झगड़ा मिट गया। तू कौन ?मैं कौन?

यत्रतत्र सर्वत्र
तुम ही तुम हो
क्या और कहूं
मुझ में भी तुम ही हो
जहां कोई नहीं
वहां तुम हो
जहां है सब
वहां भी तुम हो
अब भेद नहीं रहा कुछ करने कराने का
अब खेद नहीं रहा सीने से लगाने का।

मन में कुछ पाने की लालसा नहीं
कुछ खोने का डर नहीं
कुछ पाने की फिक्र नहीं
तुम मेरे हो और रहोगे
यही आधार मेरे विश्वास को मिला

मेरी कोरी श्रद्धा को अब रहा नहीं कोई गिला

अब हूं मस्त अलमस्त, तेरी मस्ती में ,
क्या रखा मेरी, खोखली हस्ती में।

तुम पर एतबार का नतीजा है
मेरे मालिक तेरे प्यार में मेरा मन हार कर भी जीता है।
मेरा मन हार भी जीता है।

अब प्रश्न हुए सब मोन।झगड़ा मिट गया तू कौन? मैं कौन?

Sangam Insight

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