आरज़ुओं पर टिकी दुनिया सारी।
आरज़ू से खुलती हिम्मत की पिटारी।
जोआरज़ू सनम को बाहों में लेने की ना होती,
तो
तुलसी ने रामायण कहां से लिखी होती।
जो आरज़ू मीरा की डर जाती राणा से,
तो फूलों के हार कैसे निकलते नाग पिटारों से।
आरज़ुओं ने ही रावण को उकसाया,
तभी मां को लंका उठा लाया।
आरज़ूएं गोपियों की,
कान्हा से मिलने की, किस्से, कहानी, कविता बनी पनघट की।
यह आरज़ू ही थी शिव की,
चांदों के चांद कन्हैया से मिलने की,
पहनकर साड़ी मटक कर कमर चलने की।
आरज़ुओं पर टिकी दुनिया सारी।
आरज़ू से खुलती हिम्मत की पिटारी।
आरज़ू आशिक की, अपनी मोहब्बत से मिलने की,
दीवानी हो जैसे नदी,
सागर से मिलने की।
आरज़ू एक किरण की,
सूरजमुखी के खिलने की।
आरज़ू पूरी रात कमल में,
भ्रमर के गुंजन की।
आरज़ू गंगा की,
आरज़ू जमुना की,
प्रभु के चरणों से लिपटने की।
आरज़ुओं पर टिकी दुनिया सारी।
आरज़ू से खुलती हिम्मत की पिटारी।
आरज़ू को कोई रोक नहीं सकता।
आरज़ू को कोई टोक नहीं सकता।
आरज़ू ही है सब की शक्ति,
आरज़ू से ही है खिलती भक्ति।
आरज़ू में ही है छुपी युक्ति,
आरज़ू के आधार में ही है भुक्ति।
आरज़ू में ही है मुक्ति।
आरज़ुओं पर टिकी दुनिया सारी।
आरज़ू से खुलती हिम्मत की पिटारी।
जो आरज़ू न होती, तो ईश्वर का जन्म ना होता।
मां यशोदा,
मां कौशल्या का आंगन सूना होता।
कहां राम पैज़निया पहन कर ठुमकते।
कैसे श्याम माखन पर लुढ़कते।
कैसे सूर के पदों में पलना झूलते।
कैसे मीरा के गिरधर,
विरह के झूले झूलते।
वह राधा की हंसी, वह कान्हा की बंसी,
विदुर के छिलके, लक्ष्मण को बेर लगे हल्के।
वह अग्नि परीक्षा सीता की,
क्या आरज़ू थी राम की?
संदेश क्या छुपा है, यह हर आरज़ू पर लिखा है।
जैसे बीज में फल नियत है,
जैसे फल में बीज जीवित है।
विघटन और संगठन,
सब उनकी ही तो है आरज़ू।
अब हम
क्या और किसकी करें ज़ुस्तज़ू?
हे प्रभु,
अब बस तेरी ही आरज़ू।
तेरी ही आरज़ू।
आरज़ुओं पर टिकी दुनिया सारी।
आरज़ू से खुलती हिम्मत की पिटारी।