ओंकार की गूंज ही एकमात्र ध्वनि है
नदियों की कलकल में,
झरनो की चंचलता में,
पर्वत के सीने में,
अमृत के पीने में,
हवाओं के मौन में,
सुरों के संगीत में,
आकाश के साए में,
परिंदों के पैरों में,
धरती के धैर्य में,
मानव के सीने में,
प्राण शक्ति मन में।
ओ मानव!
ध्यान कर उस ध्वनि का,
जो हर स्वर में समाये
एक ओंकार ही सतनाम है,
जो जीवन का एहसास कराए।