कुछ और की
यह कैसी तलाश है।
किसके सुरों की मुझे अब बाकी तलाश है।
यह कौन सा है फूल जो दे रहा खुशबू पतझड़ में ,
क्या ये ही पलाश है।
कुछ और यह कैसी तलाश है।
भ्रमित तो नहीं हूं फिर भी दिग्भ्रमित सा खिंचा जा रहा हूं,
कि शायद मेरे ही शब्दों का कोई आकाश है।
किसके सुरों की मुझको अब तलाश है
कुछ और की ये कैसी तलाश है।
रचनाएं कितनी सुंदर है,
कल्पनाएं
भी मनमोहक है,
पर मन का क्या करूं
जकड़ा सा
दुबका सा
सिमटा सा बैठा हुआ है
क्या करुं
या न करूं की
रेखा मिटती ही नहीं,
ए जिंदगी ले चल मुझे,
कहीं और कहीं
कहीं और कहीं।
कुछ और की ये कैसी तलाश है।
पतझड़ में भी जो दे रहा खुशबू क्या ये ही पलाश है
कुछ और की
ये कैसी तलाश है