मां प्रकृति

जब गर्भ निवास करूं तब तुम पोषण करतीं
अपना लहू देखकर तुम मेरा विकास करतीं ।
पूरा हो जाता हूं अष्ट कृपा पाकर
जब
नवें में विसर्जन से पहले पूर्ण देखभाल करतीं ।
आंचल में पय-पान करा
बाहों
में भर लेंतीं
उदर का पोषण कर सब अंगों की पीड़ा हर लेतीं।

गोद से उतरकर भी मैं कहां चला अकेला,

विद्या लक्ष्मी यश कीर्ति
सब मां तुझे ही पाया ।
जीवन भर हे मैया सदा तेरे ही गुण गाऊं
मैं हूं बालक तेरा सोचकर इतराऊं

जब-जब जिस योनि में आऊं
सुखी हूं, गर्भ वास में भी,
जीवन के
सारे सुख तुझसे ही पाऊं ।

- Sangam Insight

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