नवीन सृजन
मन को दूषित मत कर, ओ मन,
दूषित मन छीन लेगा, तेरा ,सब चैन अमन,
इंद्रिय विषय नहीं
इंद्रिय विजय बन
यह पथ है योगी का
तू सत्य और साहस को चुन
विवेक हीन मन में होती है
केवल अंत हीन चाहत और भटकन
जीवन छींण होता है
आयु करती मृत्यु का वरण
चल चल ईश्वर सत्य है और तू है साहस
कर कुछ नवीन सृजन
तन मन की सब इच्छा का
कर दे तू आत्मसमर्पण
मन को दूषित मत कर ओ मन