“ओ कन्हाई”
यह कैसी खामोशी है,
जो मन में मेरे समायी।
समाधि है, शांति है, या है तन्हाई।
यह कैसी खामोशी है,
ओ कन्हाई।
ओ कन्हाई।
एक तेरी ही बांसुरी है,
जो मुरझाई बहारों में जान डाल दे।
जिसकी धुन पर यह धरा चल रही है,
हर आने वाली बला टाल दे।
मन कह रहा है,
कुछ ना कहो,
कुछ भी ना कहो।
कुछ ना कहने से, शायद,
‘बात’ स्वयं संभल जाएगी।
यह कैसी खामोशी है,
जो मन में मेरे समायी।
समाधि है, शांति है, या है तन्हाई।
ओ कन्हाई।
ओ कन्हाई।
लगा लो, लगा लो, लगा लो गले।
अब न रहे
शिकवे और कोई गिले।
यूं ही चलते रहे, हमारे यह सिलसिले।
तेरी इच्छा से ही हर फूल खिले,
हर पत्ता हिले।
मन मौन होकर,
सिर्फ तेरी बांसुरी ही अब सुने।
यह कैसी खामोशी है,
जो मन में मेरे समायी।
समाधि है, शांति है, या है तन्हाई।
ओ कन्हाई।
ओ कन्हाई।