ओ सांवरे मन बावरे

ओ सांवरे मन बावरे

चीर बढ़ाते कन्हैया, तुम ना थके ,

पर दुशासन हार गया,

गर्व अपने पांच पतियों पर ,

द्रोपदी का,

उसे ही मार गया ।

कृष्ण के साथ रहते हुए,

कहां कोई उसे समझ पाया,

काले का अस्तित्व तो,

कोई कला का कलाकार ही समझ पाया ।

जितना डुबोगे तुम इस रंग में

उतना ही निखर जाओगे

जो अपने काले दिल को

उस काले में ही समर्पित करते जाओगे।

ढूंढ लो जहां में, जिस रंग में तुमको वह मिल जाए,

सच कहूं काले में ही सब रंग उतर जाएं

समा जाएं।

जिंदगी भर ढूंढती रही जिस चैन को  आंखें ,

बंद आंखों में सुकून बन कर आया,

जिंदगी घनी धूप,

सांवरे, तुम घना साया।

Sangam Insight

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