पिया,संगिनी हूं मैं तुम्हारी।

पिया, संगिनी हूं मैं तुम्हारी।

जब से मिले हैं,
अब तक तुम्हारे साथ ही जिया है।

कभी रूठ कर,
कभी खुद ही मान कर,
कभी तुम्हारे लिए कुछ कर कर,
कभी तुम्हारे लिए कुछ न कर कर
साथ दिया है।
पिया, जब से मिले हैं,
तुम्हारे साथ ही जिया है।

कई बार सोचा, तुम ही क्यों मिले,
मुझमें तो कुछ खास नहीं था।
पर तुमसे मिलकर जीवन के खास हो गए,
सब सिलसिले।
कई बार सोचा तुम ही क्यों मिले।


दांपत्य में साथ चलना ही इसकी खूबसूरती है।
किसने,
कितना,
एक-दूसरे को जाना, या न भी जाना,
इतना नहीं जरूरी,
जितना कि साथ रहना जरूरी है।

कहने से ज्यादा,
चुप रह जाना, सह जाना, जरूरी है,
अपने मान-सम्मान से ज्यादा,
सामने वाले को समझना, सह जाना, जरुरी है।

यही इस रिश्ते का विशेष गुण है।
यही इस रिश्ते को सबसे खास बनाता है।
प्यार हो ना हो, पर
अपनी बात रखते हुए
दूसरे की सेल्फ रिस्पेक्ट जरूरी है।

अधिकार और प्यार का अजीब-सा संतुलन बनाए रखा।
यूं तो कुछ खास न थे हम दोनों,
पर एक-दूजे को खास बनाए रखा।

पिया, हर लम्हा मैं तुम्हारे साथ ही जिया।
कभी तुमने साथ दिया,
कभी साथ नहीं दिया,
पर ,
हर लम्हा मैंने तुम्हारे साथ ही जिया है।


अब साथ
चलते-चलते लगता है,
अच्छा किया,
जो साथ दिया।
संस्कारों की संस्कृति ने हमें
खूब निखारा,
इस रिश्ते को सबसे
खूबसूरत होने का,
मजबूत होने का,
नाम दिया।

संगिनी हूं मैं तुम्हारी,
पिया,
मैंने “जीवन”
तुम्हारे साथ ही जिया है,
मैंने “जीवन” तुम्हारे साथ ही जिया है।

Sangam Insight

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