श्रीकृष्ण कहते हैं

"श्रीकृष्ण कहते हैं"

प्रिय अर्जुन,
जीवन एक युद्ध है, संघर्ष है, और तुझे लड़ना है।
या तो लड़, या मुंह छिपाकर मर।
नहीं, नहीं, तू लड़।
इन मरे-मराए पर चढ़।
मैं कह रहा हूँ, सो डर मत।
यह तो पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं।

ना पूजा से, ना पाठ से,
ना ही वेद अध्ययन से
मैं किसी से प्राप्त नहीं होता।
मैं तो उसके साथ खड़ा हूँ
जो अपने स्वधर्म का पालन करने में कर्मशील है।

*”यत्र योगेश्वर: कृष्णो, यत्र पार्थो धनुर्धर:।
तत्र श्री: विजय: भूति: ध्रुवा नीति: मतिर मम।”**

मेरे भरोसे पर रहना ही मेरी भक्ति है।
भक्ति स्वतंत्र है और सारे गुणों की खान है।

*श्रीकृष्ण कहते हैं: जीवन एक युद्ध है, संघर्ष है।*

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