जो शमशान की याद दिलाती है।
यह कैसी क्रांति है
जो हमारा परिचय हमको ही कराती है।
ओमन ,तू,
शांति और क्रांति में
कैसा उलझ सा गया है?
क्या सही क्या गलत,
जान कर भी,
कह नहीं पा रहा है?
तेरी चुप को,
मौन का नाम न दे।
नयन मूंद कर,
अंतर-मन में जो सच है ,
वह कह दे।
तेरा, खुद का साथ ही
साहसी सत्य की
क्रांति में ,
शाश्वत शांति ले कर आयेगा ।
क्रांति और शांति
अलग-अलग नहीं है,
दोनों एक दूसरे के लिए,
बीज और फल हैं।
आज की शांति का
आधार,
कल हुई क्रांति।
अबकी बार ,
इस मन की क्रांति को,
नया आकार दे।
सपना नए बुने जो तूने,
स्वप्निल को साकार ले।